स्वतंत्रता दिवस
हृदय गदगद हो जाता यह विचार करके भी की हम भारत वासी है
इस देश की संस्कृति इस देश की सभ्यता यहां की भाषा यहां का परिवेश सबकुछ आत्मिकता से भरा हुआ है परंतु इस सुखी संपन्न देश में जहाँ के कण कण से प्रेम प्रमुदिता के भाव मिलते है उसी देश मे आजादी के 74 साल बाद भी क्या हम आजाद है
करें स्वागत किस तरह हम तेरा ये जश्ने आजादी
खड़े है सामने कितने दहकते प्रश्न बुनियादी
उगी आंखों में बेचैनी अधर पर मौन ठहरा है
यहाँ कुछ बंधुओ में मजअबी उन्माद गहरा है
हवा में कपकपी इंसान खून में सन रहें होंगे
अभी बारूद के बादल कही पर बन रहें होंगे
कहीं षड्यंत्र की मल्लिका मल्हारे गा रही होगी
कोई टोली किसी का कत्ल करने जा रही होगी
कही है ग्रास हंसो का कौवे छीन ले जाएं
कोई मजबूर कचरे से दाने बीन कर खाएं